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Lalita Sahasranama Stotram in Hindi

श्री ललितासहस्रनाम स्तॊत्रम्
Lalitha Sahasranama Stotram in Hindi

 

Lalitha Sahasranama Stotram in Hindi

Lalitha Sahasranama Stotram Hindi is a sacred and powerful hymn, dedicated to the Goddess Lalita. Goddess Lalita is also called Tripura Sundari or Shodashi. ‘Sahasra’ means thousand and ‘Nama’ means name. It consists of 1000 names of Goddess Lalita, each of which defines her divine qualities and attributes.

Lalitha Sahasranama Stotram is part of the ancient Hindu text called the Brahmanda Purana, one of the 18 Puranas. It discusses mostly the history of the universe. It is believed that the eight vaak devis were instructed by Goddess Lalita herself to compose Lalita Sahasranama. In one of the chapters of Brahmanda Purana, Lord Hayagriva discusses Lalitha Sahasranama Lyrics with Sage Agastya. It is said that Lord Hayagriva explained the meaning and significance of each of the thousand names and how they relate to the different aspects of the Goddess Lalita Devi. Lalitha Sahasranama Stotram Lyrics in Hindi and its meaning is given below. You can chant this daily with devotion to to receive the blessings of Goddess Lalita.


श्री ललिता सहस्रनाम स्तॊत्रम्

ललिता सहस्रनाम स्तोत्रम देवी ललिता को समर्पित एक पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है। देवी ललिता को त्रिपुर सुंदरी या षोडशी भी कहा जाता है। 'सहस्र' का अर्थ है हजार और 'नाम' का अर्थ है नाम। इसमें देवी ललिता के 1000 नाम शामिल हैं, जिनमें से प्रत्येक उनके दिव्य गुणों और विशेषताओं को परिभाषित करता है।

ललिता सहस्रनाम स्तोत्रम ब्रह्माण्ड पुराण नामक प्राचीन हिंदू पाठ का हिस्सा है, जो 18 पुराणों में से एक है। यह ज्यादातर ब्रह्मांड के इतिहास पर चर्चा करता है। ऐसा माना जाता है कि आठ वाक् देवियों को देवी ललिता ने स्वयं ललिता सहस्रनाम की रचना करने का निर्देश दिया था। ब्रह्माण्ड पुराण के एक अध्याय में, भगवान हयग्रीव ऋषि अगस्त्य के साथ ललिता सहस्रनाम गीत पर चर्चा करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान हयग्रीव ने हजारों नामों में से प्रत्येक का अर्थ और महत्व समझाया और बताया कि कैसे वे देवी ललिता देवी के विभिन्न पहलुओं से संबंधित हैं।

ललिता सहस्रनाम स्तोत्रम के लाभ अपार हैं। ललिता सहस्रनाम स्तोत्रम को हिंदू धर्म में सबसे शक्तिशाली और महत्वपूर्ण मंत्रों में से एक माना जाता है। भक्ति के साथ इस स्तोत्र का पाठ करने से महान आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते हैं। साथ ही यह जीवन में आने वाली समस्याओं और बाधाओं को दूर करने की शक्ति रखता है। प्रत्येक छंद या नाम को एक शक्तिशाली ध्वनि माना जाता है जिसका उपयोग ध्यान या अन्य आध्यात्मिक प्रथाओं के लिए किया जा सकता है।


Lalitha Sahasranama Stotram Lyrics in Hindi

॥ श्री ललितासहस्रनाम स्तॊत्रम् ॥

 

अस्य श्री ललिता सहस्रनामस्तॊत्र महामंत्रस्य वशिन्यादि वाग्दॆवता ऋषयः । अनुष्टुप्‌ छंदः । श्री ललिता परमॆश्वरी दॆवता । श्रीमद्वाग्भवकूटॆति बीजं । मध्यकूटॆति शक्तिः । शक्तिकूटॆति कीलकं । मम श्रीललितामहात्रिपुरसुंदरीप्रसादसिद्धिद्वारा चिंतितफलावाप्त्यर्थॆ जपॆ विनियॊगः ॥


॥ ध्यानम् ॥


सिंधूरारुण विग्रहां त्रिनयनां माणिक्यमौलिस्फुरत्‌ ।

तारानायक शॆखरां स्मितमुखीमापीनवक्षॊरुहाम्‌ ॥

पाणिभ्यामलिपूर्णरत्नचषकां रक्तॊत्पलं बिभ्रतीं ।

स्ॐयां रत्नघटस्थरक्तचरणां ध्यायॆत्परामंबिकाम्‌ ॥


अरुणां करुणातरंगिताक्षीं धृतपाशांकुश पुष्पबाणचापाम्‌ ।

अणिमादिभिरावृतां मयूखैरहमित्यॆव विभावयॆ भवानीम्‌ ॥


ध्यायॆत्पद्मासनस्थां विकसितवदनां पद्मपत्रायताक्षीं

हॆमाभां पीतवस्त्रां करकलितलसमद्धॆमपद्मां वरांगीम ।

सर्वालंकारयुक्तां सकलमभयदां भक्त नम्रां भवानीं

श्रीविद्यां शांतमूर्तिं सकलसुरनुतां सर्वसंपत्प्रदात्रीम्‌ ॥


सकुंकुम विलॆपना मळिकचुंबि कस्तूरिकां

समंदहसितॆक्षणां सशरचाप पाशांकुषाम्‌ ।

अशॆष जनमॊहिनी मरुणमाल्य भूषॊज्ज्वलां

जपाकुसुम भासुरां जपविधौ स्मरॆदंबिकाम्‌ ॥


लमित्यादि पंचपूजां कुर्यात्‌ ।


लं - पृथिवीतत्त्वात्मिकायै श्री ललितादॆव्यै गंधं परिकल्पयामि ।

हं - आकाशतत्त्वात्मिकायै श्री ललितादॆव्यै पुष्पं परिकल्पयामि ।

यं - वायुतत्त्वात्मिकायै श्री ललितादॆव्यै धूपं परिकल्पयामि ।

रं - वह्नितत्त्वात्मिकायै श्री ललितादॆव्यै दीपं परिकल्पयामि ।

वं - अमृततत्त्वात्मिकायै श्री ललितादॆव्यै अमृतनैवॆद्यं परिकल्पयामि ।

सं - सर्वतत्त्वात्मिकायै श्री ललितादॆव्यै सर्वॊपचारान्‌ परिकल्पयामि ।


॥ अथ श्रीललितासहस्रनाम स्तॊत्रं ॥


ॐ श्री माता श्री महाराज्ञी श्रीमत्सिंहासनॆश्वरी ।

चिदग्निकुंडसंभूता दॆवकार्यसमुद्यता ॥ १ ॥


उद्यद्भानुसहस्राभा चतुर्बाहुसमन्विता ।

रागस्वरूपपाशाढ्या क्रॊधाकारांकुशॊज्वला ॥ २ ॥


मनॊरूपॆक्षु कॊदंडा पंचतन्मात्रसायका ।

निजारुण प्रभापूर मज्जद्ब्रह्मांडमंडला ॥ ३ ॥


चंपकाशॊकपुन्नाग सौगंधिकलसत्कजा ।

कुरुविंदमणिश्रॆणी कनत्कॊटीरमंडिता ॥ ४ ॥


अष्टमीचंद्र विभ्राजदलिकस्थलतॊभिता ।

मुखचंद्र कलंकाभ मृगनाभिविशॆषका ॥ ५ ॥


वदनस्मरमांगल्य गृहतॊरणचिल्लिका ।

वक्त्रलक्ष्मी परीवाहचलन्मीनाभलॊचना ॥ ६ ॥


नवचंपक पुष्पाभनासादंड विराजिता ।

ताराकांति तिरस्कारि नासाभरणभासुरा ॥ ७ ॥


कदंबमंजरी क्लुप्तकर्णपूर मनॊहरा ।

ताटंकयुगलीभूत तपनॊडुपमंडला ॥ ८ ॥


पद्मरागशिलादर्श परिभाविकपॊलभूः ।

नवविद्रुमबिंबश्री न्यक्कारिरदनच्छदा ॥ ९ ॥


शुद्धविद्यांकुराकार द्विजपंक्तिद्वयॊज्वला ।

कर्पूरवीटिकामॊद समाकर्षद्दिगंतरा ॥ १० ॥


निजसल्लापमाधुर्य विनिर्भत्सितकच्छपी ।

मंदस्मित प्रभापूर मज्जत्कामॆशमानसा ॥ ११ ॥


अनाकलित सादृश्य चुबुकश्री विराजिता ।

कामॆशबद्धमांगल्य सूत्रशॊभितकंधरा ॥ १२ ॥


कनकांगदकॆयूर कमनीय भुजान्विता ।

रत्नग्रैवॆयचिंताकलॊलमुक्ताफलान्विता ॥ १३ ॥


कामॆश्वर प्रॆमरत्न मणिप्रतिपणस्तनी ।

नाभ्यालवालरॊमालिलताफलकुचद्वयी ॥ १४ ॥


लक्ष्यरॊमलताधार तासमुन्नॆयमध्यमा ।

स्तनभारदलन्मध्य पट्टबंधवलित्रया ॥ १५ ॥


अरुणारुण कौसुंभ वस्त्रभास्वत्कटीतटी ।

रत्नकिंकिणिकारम्य रशनादामभूषिता ॥ १६ ॥


कामॆशज्ञातसौभाग्य मार्दमॊरुद्वयान्विता ।

माणिक्यमुकुटादार जानुद्वयविराजिता ॥ १७ ॥


इंद्रगॊप परिक्षिप्त स्मरतूणाभजंघिका ।

गूढगुल्फा कूर्मपृष्ठजयिष्णु प्रपदान्विता ॥ १८ ॥


नखदीधितिसंछन्ननमज्जनतमॊगुणा ।

पदद्वय प्रभाजाल पराकृतसरॊरुहा ॥ १९ ॥


शिंजानमणिमंजीर मंडितश्रीपदांबुजा ।

मरालीमंदगमना महालावण्य शॆवधिः ॥ २० ॥


सर्वारुणाऽनवद्यांगी सर्वाभरणभूषिता ।

शिवकामॆश्वरांकस्था शिवास्वाधीनवल्लभा ॥ २१ ॥


सुमॆरुमध्यशृंगस्था श्रीमन्नगरनायिका ।

चिंतामणिगृहांतस्थापंचब्रह्मासनस्थिता ॥ २२ ॥


महापद्माटवीसंस्था कदंबवनवासिनी ।

सुधासागरमध्यस्था कामाक्षी कामदायिनी ॥ २३ ॥


दॆवर्षिगणसंघात स्तूयमानात्मवैभवा ।

भंडासुरवधॊद्युक्त शक्तिसॆनासमन्विता ॥ २४ ॥


संपत्करी समारूढ सिंधुरव्रजसॆविता ।

अश्वरूढाधिष्ठिताश्वकॊटिकॊटिभिरावृता ॥ २५ ॥


चक्रराजरथारूढ सर्वायुधपरिष्कृता ।

गॆयचक्र रथारूढमंत्रिणीपरिसॆविता ॥ २६ ॥


किरिचक्र रथारूढ दंडनाथापुरस्कृता ।

ज्वालामालिनिकाक्षिप्त वह्निप्राकारमध्यगा ॥ २७ ॥


भंडसैन्यवधॊद्युक्त शक्ति विक्रमहर्षिता ।

नित्यापराक्रमाटॊप निरीक्षणसमुत्सुका ॥ २८ ॥


भंडपुत्रवधॊद्युक्त बालाविक्रमनंदिता ।

मंत्रिण्यंबाविरचित विषंगवधतॊषिता ॥ २९ ॥


विशुक्र प्राणहरण वाराही वीर्यनंदिता ।

कामॆश्वरमुखालॊक कल्पित श्रीगणॆश्वरा ॥ ३० ॥


महागणॆशनिर्भिन्न विघ्नयंत्रप्रहर्षिता ।

भंडासुरॆंद्र निर्मुक्तशस्त्रप्रत्यस्त्रवर्षिणी ॥ ३१ ॥


करांगुलिनखॊत्पन्न नारायणदशाकृतिः ।

महापाशुपतास्त्राग्नि निर्दग्दासुरसैनिका ॥ ३२ ॥


कामॆश्वरास्त्रनिर्दग्ध सभंडासुरशून्यका ।

ब्रह्मॊपॆंद्र महॆंद्रादिदॆवसंस्तुतवैभवा ॥ ३३ ॥


हरनॆत्राग्नि संदग्ध कामसंजीवनौषधिः ।

श्रीमद्वाग्भवकूटैक स्वरूपमुखपंकजा ॥ ३४ ॥


कंठाधःकटिपर्यंत मध्यकूटस्वरूपिणी ।

शक्तिकूटैकतापन्न कट्यधॊभागधारिणी ॥ ३५ ॥


मूलमंत्रात्मिका मूलकूटत्रयकलॆवरा ।

कुलामृतैकरसिका कुलसंकॆतपालिनी ॥ ३६ ॥


कुलांगना कुलांतस्थाकौलिनी कुलयॊगिनी ।

अकुला समयांतस्था समयाचारतत्परा ॥ ३७ ॥


मूलाधारैकनिलया ब्रह्मग्रंथिविभॆदिनी ।

मणीपूरांतरुदिता विष्णुग्रंथिविभॆदिनी ॥ ३८ ॥


आज्ञाचक्रांतरालस्था रुद्रग्रंथिविभॆदिनी ।

सहस्रारांबुजारूढा सुधासाराभिवर्षिणी ॥ ३९ ॥


तटिल्लतासमरुचिः षट्‌चक्रॊपरिसंस्थिता ।

महाशक्तिः कुंडलिनी बिसतंतुतनीयसी ॥ ४० ॥


भवानी भावनागम्या भवारण्याकुठारिका ।

भद्रप्रिया भद्रमूर्तिः भक्तसौभाग्यदायिनी ॥ ४१ ॥


भक्तिप्रिया भक्तिगम्या भक्तिवश्या भयापहा ।

शांभवी शारदाराध्या शर्वाणी शर्मदायिनी ॥ ४२ ॥


शांकरी श्रीकरी साध्वी शरच्चंद्रनिभानना ।

शातॊदरी शांतिमती निराधारा निरंजना ॥ ४३ ॥


निर्लॆपा निर्मला नित्या निराकारा निराकुला ।

निर्गुणा निष्कला शांता निष्कामा निरुपप्लवा ॥ ४४ ॥


नित्यमुक्ता निर्विकारा निष्प्रपंचा निराश्रया ।

नित्यशुद्धा नित्यबुद्धा निरवद्या निरंतरा ॥ ४५ ॥


निष्कारणा निष्कळंका निरुपाधिर्निरीश्वरा ।

नीरागा रागमथनी निर्मदा मदनाशिनी ॥ ४६ ॥


निश्चिंता निरहंकारा निर्मॊहा मॊहनाशिनी ।

निर्ममा ममताहंत्री निष्पापा पापनाशिनी ॥ ४७ ॥


निष्क्रॊधा क्रॊधशमनी निर्लॊभालॊभनाशिनी ।

निःसंशया संशयघ्नी निर्भवा भवनाशिनी ॥ ४८ ॥


निर्विकल्पा निराबाधा निर्भॆदा भॆदनाशिनी ।

निर्नाशा मृत्युमथनी निष्क्रिया निष्परिग्रहा ॥ ४९ ॥


निस्तुला नीलचिकुरा निरपाया निरत्यया ।

दुर्लभा दुर्गमा दुर्गा दुःखहंत्री सुखप्रदा ॥ ५० ॥


दुष्टदूरा दुराचारशमनी दॊषवर्जिता ।

सर्वज्ञा सांद्रकरुणा समानाधिकवर्जिता ॥ ५१ ॥


सर्वशक्तिमयि सर्वमंगळा सद्गतिप्रदा ।

सर्वॆश्वरी सर्वमयि सर्वमंत्र स्वरूपिणी ॥ ५२ ॥


सर्वयंत्रात्मिका सर्वतंत्ररूपा मनॊन्मनी ।

माहॆश्वरी महादॆवी महालक्ष्मीर्मृडप्रिया ॥ ५३ ॥


महारूपा महापूज्या महापातकनाशिनी ।

महामाया महासत्वा महाशक्तिर्महारतिः ॥ ५४ ॥


महाभॊगा महैश्वर्या महावीर्या महाबला ।

महाबुद्धिर्महासिद्धिर्महायॊगॆश्वरॆश्वरी ॥ ५५ ॥


महातंत्रा महामंत्रा महायंत्रा महासना ।

महायागक्रमाराध्या महाभैरवपूजिता ॥ ५६ ॥


महॆश्वरमहाकल्प महातांडवसाक्षिणी ।

महाकामॆशमहिषी महात्रिपुरसुंदरी ॥ ५७ ॥


चतुःषष्ट्युपचाराढ्या चतुःषष्टि कलामयि ।

महाचतुःषष्टि कॊटि यॊगिनीगणसॆविता ॥ ५८ ॥


मनुविद्या चंद्रविद्या चंद्रमंडलमध्यगा ।

चारुरूपा चारुहासा चारुचंद्रकलाधरा ॥ ५९ ॥


चराचरजगन्नाथा चक्रराजनिकॆतना ।

पार्वती पद्मनयना पद्मरागसमप्रभा ॥ ६० ॥


पंचप्रॆतासनासीना पंचब्रह्मस्वरूपिणि ।

चिन्मयी परमानंदा विज्ञानघनरूपिणी ॥ ६१ ॥


ध्यानध्यातृध्यॆयरूपा धर्माधर्मविवर्जिता ।

विश्वरूपा जागरिणी स्वपंती तैजसात्मिका ॥ ६२ ॥


सुप्ता प्राज्ञात्मिका तुर्या सर्वावस्थाविवर्जिता ।

सृष्टिकर्त्री ब्रह्मरूपा गॊप्त्रीगॊविंदरूपिणी ॥ ६३ ॥


संहारिणी रुद्ररूपा तिरॊधानकरीश्वरी ।

सदाशिवानुग्रहदा पंचकृत्यपरायणा ॥ ६४ ॥


भानुमंडलमध्यस्था भैरवी भगमालिनी ।

पद्मासना भगवती पद्मनाभसहॊदरी ॥ ६५ ॥


उन्मॆषनिमिषॊत्पन्न विपन्नभुवनावळिः ।

सहस्रशीर्षवदना सहस्राक्षी सहस्रपात्‌ ॥ ६६ ॥


आब्रह्मकीटजननी वर्णाश्रमविधायिनी ।

निजाज्ञा रूपनिगमा पुण्यापुण्य फलप्रदा ॥ ६७ ॥


श्रुतिसीमंतसिंधूरीकृत पादाब्जधूळिका ।

सकलागमसंदॊह शुक्तिसंपुटमौक्तिका ॥ ६८ ॥


पुरुषार्थप्रदापूर्णा भॊगिनी भुवनॆश्वरी ।

अंबिकाऽनादिनिधना हरिब्रह्मॆंद्रसॆविता ॥ ६९ ॥


नारायणी नादरूपा नामरूपविवर्जिता ।

ह्रींकारी ह्रीमतीहृद्या हॆयॊपादॆयवर्जिता ॥ ७० ॥


राजराजार्चिताराज्ञी रम्या राजीवलॊचना ।

रंजनी रमणी रस्या रणत्किंकिणिमॆखला ॥ ७१ ॥


रमा राकॆंदुवदना रतिरूपा रतिप्रिया ।

रक्षाकरी राक्षसघ्नी रामा रमणलंपटा ॥ ७२ ॥


काम्या कामकलारूपा कदंबकुसुमप्रिया ।

कल्याणी जगतीकंदा करुणारससागरा ॥ ७३ ॥


कलावती कलालापा कांता कादंबरीप्रिया ।

वरदा वामनयना वारुणीमदविह्वला ॥ ७४ ॥


विश्वाधिकावॆदवॆद्या विंध्याचलनिवासिनी ।

विधात्री वॆदजननी विष्णुमायाविलासिनी ॥ ७५ ॥


क्षॆत्रस्वरूपा क्षॆत्रॆशि क्षॆत्रक्षॆत्रज्ञपालिनी ।

क्षयवृद्धिविनिर्मुक्ता क्षॆत्रपालसमर्चिता ॥ ७६ ॥


विजया विमला वंद्या वंदारुजनवत्सला ।

वाग्वादिनी वामकॆशी वह्निमंडलवासिनी ॥ ७७ ॥


भक्तिमत्कल्पलतिका पशुपाशविमॊचनी ।

संहृताशॆषपाषंडा सदाचारप्रर्तिका ॥ ७८ ॥


तापत्रयाग्नि संतप्तसमाह्लादन चंद्रिका ।

तरुणीतापसाराध्या तनुमध्या तमॊऽपहा ॥ ७९ ॥


चतिस्तत्पदलक्ष्यार्था चिदॆकरसरूपिणी ।

स्वात्मानंदलवीभूत ब्रह्माद्यानंदसंततिः ॥ ८० ॥


परा प्रत्यक्चितीरूपा पश्यंती परदॆवता ।

मध्यमा वैखरीरूपा भक्तमानसहंसिका ॥ ८१ ॥


कामॆश्वरप्राणनाडी कृतज्ञा कामपूजिता ।

शृंगाररससंपूर्णा जया जालंधरस्थिता ॥ ८२ ॥


ऒड्याणपीठनिलया बिंदुमंडलवासिनी ।

रहॊयागक्रमाराध्या रहस्तर्पणतर्पिता ॥ ८३ ॥


सद्यःप्रसादिनी विश्वसाक्षिणी साक्षिवर्जिता ।

षडंगदॆवतायुक्ता षाड्गुण्य परिपूरिता ॥ ८४ ॥


नित्यक्लिन्नानिरुपमा विर्वाणसुखदायिनी ।

नित्याषॊडशिकारूपा श्रीकंठार्धशरीरिणी ॥ ८५ ॥


प्रभावती प्रभारूपा प्रसीद्धा परमॆश्वरी ।

मूलप्रकृतिरव्यक्ता व्यक्ताव्यक्तस्वरूपिणी ॥ ८६ ॥


व्यापिनी विविधाकारा विद्याऽविद्यास्वरूपिणी ।

महाकामॆशनयन कुमुदाह्लादक्ॐउदी ॥ ८७ ॥


भक्तहार्दतमॊभॆद भानुमद्भानुसंततिः ।

शिवदूती शिवाराध्या शिवमूर्तिः शिवंकरी ॥ ८८ ॥


शिवप्रिया शिवपरा शिष्टॆष्टा शिष्टपूजिता ।

अप्रमॆया स्वप्रकाशा मनॊवाचामगॊचरा ॥ ८९ ॥


चिच्छक्तिश्चॆतनारूपा जडशक्तिर्जडात्मिका ।

गायत्री व्याहृतिः संध्या द्विजबृंदनिषॆविता ॥ ९० ॥


तत्त्वासना तत्त्वमयी पंचकॊशांतरस्थिता ।

निस्सीममहिमा नित्ययौवना मदशालिनी ॥ ९१ ॥


मदघूर्णितरक्ताक्षी मदपाटलगंढभूः ।

चंदनद्रवदिग्धांगी चांपॆयकुसुमप्रिया ॥ ९२ ॥


कुशला कॊमलाकारा कुरुकुल्लाकुलॆश्वरी ।

कुलकुंडालया कौलमार्गतत्परसॆविता ॥ ९३ ॥


कुमारगणनाथांबा तुष्टिः पुष्ठिर्मतिधृतिः ।

शांतिःस्वस्तिमती कांतिर्नंदिनी विघ्ननाशिनी ॥ ९४ ॥


तॆजॊवती त्रिनयना लॊलाक्षी कामरूपिणी ।

मालिनी हंसिनी माता मलयाचलवासिनी ॥ ९५ ॥


सुमुखी नळिनी सुभ्रूः शॊभना सुरनायिका ।

कालकंठी कांतिमती क्षॊभिणी सूक्ष्मरूपिणी ॥ ९६ ॥


वज्रॆश्वरी वामदॆवी वयॊऽवस्थाविवर्जिता ।

सिद्धॆश्वरी सिद्धविद्या सिद्धमाता यशस्विनी ॥ ९७ ॥


विशुद्धिचक्रनिलया रक्तवर्णा त्रिलॊचना ।

खट्वांगादिप्रहरणा वदनैकसमन्विता ॥ ९८ ॥


पायसान्नप्रिया त्वक्‌स्था पशुलॊकभयंकरी ।

अमृतादिमहाशक्ति संवृता डाकिनीश्वरी ॥ ९९ ॥


अनाहताब्जनिलया श्यामाभा वदनद्वया ।

दंष्ट्रॊज्ज्वलाऽक्षमालादिधरा रुधिरसंस्थिता ॥ १०० ॥


काळरात्र्यादिशक्त्यौघवृता स्निग्धौदनप्रिया ।

महावीरॆंद्रवरदाराकिण्यंबास्वरूपिणी ॥ १०१ ॥


मणिपूराब्जनिलया वदनत्रयसंयुता ।

वज्रादिकायुधॊपॆता डामर्यादिभिरावृता ॥ १०२ ॥


रक्तवर्णा मांसनिष्ठा गूढान्नप्रीतमानसा ।

समस्तभक्तसुखदा लाकिन्यंबास्वरूपिणी ॥ १०३ ॥


स्वाधिष्ठानांबुजगता चतुर्वक्त्रमनॊहरा ।

शूलाध्यायुधसंपन्ना पीतवर्णातिगर्विता ॥ १०४ ॥


मॆदॊनिष्ठा मधुप्रीता बंदिन्यादिसमन्विता ।

दध्यन्नासक्तहृदया काकिनीरूपधारिणी ॥ १०५ ॥


मूलाधारांबुजारूढा पंचवक्त्राऽस्थिसंस्थिता ।

अंकुशादिप्रहरणा वरदादिनिषॆविता ॥ १०६ ॥


मुद्गौदनासक्तचित्ता साकिन्यंबास्वरूपिणी ।

आज्ञाचक्राब्जनिलया शुक्लवर्णाषडानना ॥ १०७ ॥


मज्जासंस्थाहंसवती मुख्यशक्तिसमन्विता ।

हरिद्रान्नैकरसिका हाकिनीरूपधारिणी ॥ १०८ ॥


सहस्रदलपद्मस्था सर्ववर्णॊपशॊभिता ।

सर्वायुधदरा शुक्लसंस्थिता सर्वतॊमुखी ॥ १०९ ॥


सर्वौदनप्रीतचित्ता याकिन्यंबा स्वरूपिणी ।

स्वाहा स्वधाऽमतिर्मॆधा श्रुति स्मृतिरनुत्तमा ॥ ११० ॥


पुण्यकीर्तिः पुण्यलभ्या पुण्यश्रवणकीर्तना ।

पुलॊमजार्जिता बंधमॊचनी बंधुरालका ॥ १११ ॥


विमर्शरूपिणी विद्या वियदादिजगत्प्रसूः ।

सर्वव्याधिप्रशमनि सर्वमृत्युनिवारिणी ॥ ११२ ॥


अग्रगण्या चिंत्यरूपा कलिकल्मषनाशिनी ।

कात्यायिनी कालहंत्रि कमलाक्षनिषॆविता ॥ ११३ ॥


तांबूलपूरितमुखी दाडिमी कुसुमप्रभा ।

मृगाक्षी मॊहिनी मुख्या मृडानी मित्र रूपिणी ॥ ११४ ॥


नित्यतृप्ता भक्तनिधिर्नियंत्री निखिलॆश्वरी ।

मैत्र्यादिवासनालभ्या महाप्रळयसाक्षिणी ॥ ११५ ॥


पराशक्तिः परानिष्ठा प्रज्ञानघनरूपिणी ।

माध्वीपानालसा मत्ता मातृकावर्णरूपिणी ॥ ११६ ॥


महाकैलासनिलया मृणालमृदुदॊर्लता ।

महनीया दयामूर्तिर्महासाम्राज्यशालिनी ॥ ११७ ॥


आत्मविद्या महाविद्या श्रीविद्या कामसॆविता ।

श्रीषॊडशाक्षरीविद्या श्रीकूटा कामकॊटिका ॥ ११८ ॥


कटाक्षकिंकरीभूत कमलाकॊटिसॆविता ।

शिरःस्थिता चंद्रनिभा भालस्थॆंद्र धनुःप्रभा ॥ ११९ ॥


हृदयस्थारविप्रख्या त्रिकॊणांतरदीपिका ।

दाक्षायिणी दैत्यहंत्री दक्षयज्ञनिनाशिनी ॥ १२० ॥


दरांदॊलितदीर्घाक्षी दरहासॊज्वलन्मुखी ।

गुरुमूर्तिर्गुणनिधिर्गॊमाता गुहजन्मभूः ॥ १२१ ॥


दॆवॆशी दंडनीतिस्था दहराकाशरूपिणी ।

प्रतिपन्मुख्यराकांत तिथिमंडलपूजिता ॥ १२२ ॥


कलात्मिका कलानाथा काव्यालापविनॊदिनी ।

सचामररमावाणी सव्यदक्षिणसॆविता ॥ १२३ ॥


आदिशक्ति रमॆयात्मा परमा पावनाकृतिः ।

अनॆककॊटि ब्रह्मांडजननी दिव्यविग्रहा ॥ १२४ ॥


क्लींकारी कॆवला गुह्या कैवल्यपददायिनी ।

त्रिपुरा त्रिजगद्वंद्या त्रिमूर्तिस्त्रिदशॆश्वरी ॥ १२५ ॥


त्र्यक्षरी दिव्यगंधाड्या सिंधूरतिलकांचिता ।

उमा शैलॆंद्र तनया गौरीगंधर्वसॆविता ॥ १२६ ॥


विश्वगर्भा स्वर्णगर्भाऽवरदा वागधीश्वरी ।

ध्यानगम्याऽपरिच्छॆद्या ज्ञानदा ज्ञानविग्रहा ॥ १२७ ॥


सर्ववॆदांतसंवॆद्या सत्यानंदस्वरूपिणी ।

लॊपामुद्रार्चिता लीलाक्लुप्तब्रह्मांडमंडला ॥ १२८ ॥


अदृश्या दृश्यरहिता विज्ञात्री वॆद्यवर्जिता ।

यॊगिनी यॊगदा यॊग्या यॊगानंदा युगंधरा ॥ १२९ ॥


इच्छाशक्ति ज्ञानशक्ति क्रियाशक्ति स्वरूपिणी ।

सर्वाधारा सुप्रतिष्ठा सदसद्रूपधारिणी ॥ १३० ॥


अष्टमूर्तिरजाजैत्री लॊकयात्रा विधायिनि ।

ऎकाकिनी भूमरूपा निर्द्वैता द्वैतवर्जिता ॥ १३१ ॥


अन्नदा वसुदा वृद्धा ब्रह्मात्मैक्य स्वरूपिणी ।

बृहती ब्राह्मणी ब्राह्मी ब्रह्मानंदा बलिप्रिया ॥ १३२ ॥


भाषारूपा बृहत्सॆना भावाभावविवर्जिता ।

सुखाराध्या शुभकरी शॊभना सुलभागतिः ॥ १३३ ॥


राजराजॆश्वरी राज्यदायिनी राज्यवल्लभा ।

राजत्कृपा राजपीठनिवॆशितनिजाश्रिता ॥ १३४ ॥


राज्यलक्ष्मिः कॊशनाथा चतुरंगबलॆश्वरी ।

साम्राज्यदायिनी सत्यसंधा सागरमॆखरा ॥ १३५ ॥


दीक्षिता दैत्यशमनी सर्वलॊकवशंकरी ।

सर्वार्थदात्री सावित्री सच्चिदानंदरूपिणी ॥ १३६ ॥


दॆशकालापरिच्छिन्ना सर्वगा सर्वमॊहिनी ।

सरस्वती शास्त्रमयी गुहांबा गुह्यरूपिणी ॥ १३७ ॥


सर्वॊपाधिविनिर्मुक्ता सदाशिव पतिव्रता ।

संप्रदायॆश्वरी साध्वी गुरुमंडलरूपिणी ॥ १३८ ॥


कुलॊत्तीर्णा भगाराध्या माया मधुमती मही ।

गणांबा गुह्यकाराध्या कॊमलांगी गुरुप्रिया ॥ १३९ ॥


स्वतंत्रा सर्वतंत्रॆशी दक्षिणामूर्तिरूपिणी ।

सनकादि समाराध्या शिवज्ञानप्रदायिनी ॥ १४० ॥


चित्कलानंदकलिका प्रॆमरूपा प्रियंकरी ।

नामापारायणप्रीता नंदिविद्या नटॆश्वरी ॥ १४१ ॥


मिथ्याजगदधिष्ठाना मुक्तिदामुक्तिरूपिणी ।

लास्यप्रिया लयकरी लज्जारंभादिवंदिता ॥ १४२ ॥


भवदावसुधावृष्ठिः पापारण्यदवानला ।

दौर्भाग्यतूलवातूला जराध्वांतरविप्रभा ॥ १४३ ॥


भाग्याब्धिचंद्रिका भक्तचित्तकॆकिघनाघना ।

रॊगपर्वतदंभॊलिर्मृत्युदारुकुठारिका ॥ १४४ ॥


महॆश्वरी महाकाळी महाग्रासा महाशना ।

अपर्णा चंडिका चंडमुंडासुरनिषूदिनी॥ १४५ ॥


क्षराक्षरात्मिका सर्वलॊकॆशी विश्वधारिणी ।

त्रिवर्गदात्री सुभगा त्र्यंबका त्रिगुणात्मिका ॥ १४६ ॥


स्वर्गापवर्गदा शुद्धा जपापुष्पनिभाकृतिः ।

ऒजॊवती द्युतिधरा यज्ञरूपा प्रियव्रता ॥ १४७ ॥


दुराराध्या दुराधर्षा पाटली कुसुमप्रिया ।

महती मॆरुनिलया मंदारकुसुमप्रिया ॥ १४८ ॥


वीराराध्या वीराड्रूपा विरजा विश्वतॊमुखी ।

प्रत्यग्रूपा पराकाशा प्राणदा प्राणरूपिणी ॥ १४९ ॥


मार्तंडभैरवाराध्या मंत्रिणीन्यस्तराज्यधूः ।

त्रिपुरॆशी जयत्सॆना निस्त्रैगुण्या परापरा ॥ १५० ॥


सत्यज्ञानानंदरूपा सामरस्यपरायणा ।

कपर्दिनी कलामाला कामधुक्‌ कामरूपिणी ॥ १५१ ॥


कलानिधिः काव्यकला रसज्ञा रसशॆवधिः ।

पुष्पा पुरातना पूज्या पुष्करा पुष्करॆक्षणा ॥ १५२ ॥


परंज्यॊतिःपरंधाम मरमाणुःपरात्परा ।

पाशहस्तापाशहंत्री परमंत्र विभॆदिनी ॥ १५३ ॥


मूर्ताऽमूर्ताऽनित्यतृप्ता मुनिमानसहंसिका ।

सत्यव्रता सत्यरूपा सर्वांतर्यामिनीसती ॥ १५४ ॥


ब्रह्माणी ब्रह्मजननी बहुरूपा बुधार्चिता ।

प्रसवित्री प्रचंडाज्ञा प्रतिष्ठा प्रकटाकृतिः ॥ १५५ ॥


प्राणॆश्वरी प्राणदात्री पंचाशत्पीठरूपिणी ।

विशृंखला विविक्तस्था वीरमातावियत्प्रसूः ॥ १५६ ॥


मुकुंदा मुक्तिनिलया मूलविग्रहरूपिणी ।

भावज्ञा भवरॊगघ्नी भवचक्र प्रवर्तिनी ॥ १५७ ॥


छंदःसारा शास्त्रसारा मंत्रसारा तलॊदरी ।

उदारकीर्तिरुद्धाम वैभवावर्णरूपिणी ॥ १५८ ॥


जन्ममृत्यु जरातप्त जनविश्रांतिदायिनी ।

सर्वॊपनिषदुद्वुष्टा शांत्यतीतकलात्मिका ॥ १५९ ॥


गंभीरा गगनांतस्था गर्विता गानलॊलुपा ।

कल्पनारहिता काष्ठाऽकांता कांतार्धविग्रहा ॥ १६० ॥


कार्यकारणनिर्मुक्ता कामकॆलितरंगिता ।

कनत्कनकताटंका लीलाविग्रहधारिणी ॥ १६१ ॥


अजा क्षयविनिर्मुक्ता मुग्धा क्षिप्रप्रसादिनी ।

अंतर्मुखसमाराध्या बहिर्मुखसुदुर्लभा ॥ १६२ ॥


त्रयी त्रिवर्गनिलया त्रिस्था त्रिपुरमालिनी ।

निरामया निरालंबा स्वात्मारामा सुधासृतिः ॥ १६३ ॥


संसारपंकनिर्मग्न समुद्धरणपंडिता ।

यज्ञप्रिया यज्ञकर्त्री यजमानस्वरूपिणी ॥ १६४ ॥


धर्माधारा धनाध्यक्षा धनधान्यविवर्धिनी ।

विप्रप्रिया विप्ररूपा विश्वभ्रमणकारिणी ॥ १६५ ॥


विश्वग्रासा विद्रुमाभा वैष्णवी विष्णुरूपिणी ।

अयॊनिर्यॊनि निलया कूटस्था कुलरूपिणी ॥ १६६ ॥


वीरगॊष्ठीप्रिया वीरा नैष्कर्म्यानादरूपिणी ।

विज्ञानकलना कल्या विदग्धाबैंदवासना ॥ १६७ ॥


तत्त्वाधिका तत्त्वमयी तत्त्वमर्थस्वरूपिणी ।

सामगानप्रियास्ॐया सदाशिवकुटुंबिनी ॥ १६८ ॥


सव्यापसव्यमार्गस्था सर्वापद्विनिवारिणी ।

स्वस्थास्वभावमधुरा धीरा धीरसमर्चिता ॥ १६९ ॥


चैतन्यार्घ्य समाराध्या चैतन्यकुसुमप्रिया ।

सदॊदिता सदातुष्टा तरुणादित्यपाटला ॥ १७० ॥


दक्षिणादक्षिणाराध्या दरस्मॆरमुखांबुजा ।

कौलिनी कॆवलाऽनर्घ्या कैवल्यपददायिनी ॥ १७१ ॥


स्तॊत्रप्रिया स्तुतिमती श्रुति संस्तुतवैभवा ।

मनस्विनी मानवती महॆशी मंगलाकृतिः ॥ १७२ ॥


विश्वमाता जगद्धात्री विशालाक्षी विरागिणी ।

प्रगल्भा परमॊदारा परामॊदा मनॊमयी ॥ १७३ ॥


म्यॊमकॆशी विमानस्था वज्रिणी वामकॆश्वरी ।

पंचयज्ञप्रिया पंचप्रॆतमंचाधिशायिनी ॥ १७४ ॥


पंचमी पंचभूतॆशी पंचसंख्यॊपचारिणीः ।

शाश्वती शाश्वतैश्वर्या शर्मदा शंभुमॊहिनी ॥ १७५ ॥


धरा धरसुता धन्या धर्मिणी धर्मवर्धिनी ।

लॊकातीता गुणातीता सर्वातीता शमात्मिका ॥ १७६ ॥


बंधूककुसुमप्रख्या बाला लीलाविनॊदिनी ।

सुमंगली सुखकरी सुवॆषाढ्या सुवासिनी ॥ १७७ ॥


सुवासिन्यर्चनप्रीता शॊभना शुद्धमानसा ।

बिंदुतर्पणसंतुष्ठा पूर्वजा त्रिपुरांबिका ॥ १७८ ॥


दशमुद्रा समाराध्या त्रिपुराश्रीवशंकरी ।

ज्ञानमुद्रा ज्ञानगम्या ज्ञानज्ञॆय स्वरूपिणी ॥ १७९ ॥


यॊनिमुद्रा त्रिखंडॆशी त्रिगुणाऽंबा त्रिकॊणगा ।

अनघाऽद्भुतचारित्रा वांछितार्थप्रदायिनी ॥ १८० ॥


अभ्यासातिशयज्ञाता षडध्वातीतरूपिणी ।

आव्याजकरुणामूर्तिरज्ञानध्वांत दीपिका ॥ १८१ ॥


आबालगॊपविदिता सर्वानुल्लंघ्यशासना ।

श्रीचक्र राजनिलया श्रीमत्त्रिपुरसुंदरी ॥ १८२ ॥


श्रीशिवा शिवशक्त्यैक्यरूपिणी ललितांबिका ।

ऎवं श्रीललितादॆव्याः नाम्नां साहस्रकं जगुः ॥ १८३ ॥


॥ इती श्री ब्रह्मांडपुराणॆ उत्तरखंडॆ श्री हयग्रीवागस्त्य संवादॆ श्री ललितासहस्रनाम स्तॊत्रकथनं संपूर्णम्‌ ॥


Lalitha Sahasranama Stotram Meaning in Hindi

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ललिता सहस्रनाम स्तोत्र और उसका अर्थ नीचे दिया गया है। देवी ललिता की कृपा प्राप्त करने के लिए आप भक्ति के साथ इसका प्रतिदिन जप कर सकते हैं।

  • ॐ श्री माता श्री महाराज्ञी श्रीमत्सिंहासनॆश्वरी ।
    चिदग्निकुंडसंभूता दॆवकार्यसमुद्यता ॥ १ ॥

    राजसिंहासन पर विराजमान माता रानी को नमस्कार है।

    वह जो शुद्ध चेतना की अग्नि से उत्पन्न हुई थी और दिव्य कार्य को पूरा करने के लिए उत्पन्न हुई है।

  • उद्यद्भानुसहस्राभा चतुर्बाहुसमन्विता ।
    रागस्वरूपपाशाढ्या क्रॊधाकारांकुशॊज्वला ॥ २ ॥

    वह जो चार भुजाओं वाली, एक हजार उगते हुए सूर्यों के तेज से चमकती है। वह भक्त को रस्सी के सहारे इच्छाओं के चंगुल से खींचती हैं और घृणा और क्रोध को नियंत्रित करने में भी मदद करती हैं।

  • मनॊरूपॆक्षु कॊदंडा पंचतन्मात्रसायका ।
    निजारुण प्रभापूर मज्जद्ब्रह्मांडमंडला ॥ ३ ॥

    वह जो पाँच बाणों से मन के धनुष को चलाकर पाँचों इंद्रियों को नियंत्रित करने में मदद करती है वह दीप्तिमान लाल रोशनी से जगमगा रही है, और पूरे ब्रह्मांड को अपनी महिमा से व्याप्त कर रही है।

  • चंपकाशॊकपुन्नाग सौगंधिकलसत्कजा ।
    कुरुविंदमणिश्रॆणी कनत्कॊटीरमंडिता ॥ ४ ॥

    वह जिनके बाल चंपक, अशोक और पुन्नगा फूलों की माला से सुशोभित हैं, वह जिसका मुकुट कीमती पत्थरों से चमकता है और चंदन और अन्य सुगंधित पदार्थों की गंध से सुगंधित होता है

  • अष्टमीचंद्र विभ्राजदलिकस्थलतॊभिता ।
    मुखचंद्र कलंकाभ मृगनाभिविशॆषका ॥ ५ ॥

    वह जिसका माथा अर्धचंद्र से सुशोभित है और जिसका चेहरा शुद्धतम कस्तूरी से सुशोभित है, जो चंद्रमा में एक काले धब्बे जैसा दिखता है।


Lalitha Sahasranama Stotram Benefits

The benefits of Lalita Sahasranama Stotram are immense. Lalita Sahasranama Stotram is considered to be one of the most powerful and significant mantras in Hinduism. Recitation of this hymn with devotion brings about great spiritual benefits. Also, it has the power to remove problems and obstacles in life. Each verse or name is considered to be a powerful sound that can be used for meditation or other spiritual practices.


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